Wednesday, September 10, 2008

बाबूजी
घर की बुनियादें दीवारें बामों दर थे बाबूजी सबको
बांधे रखने वाला खास हुनर थे बाबुजी

तीन मुहल्लों में उन जैसी कद काठी वाला कोई न था
अच्छे खासे ऊँचे पूरे कद्दावर थे बाबुजी

अब तो उस सूने माथे पर कोरेपन की चादर है
अम्माजी की सारी सजधज सब जेबर थे बाबूजी

भीतर से खासे जज्बाती और ऊपर से ठेठ पिता
अलग अनूठा अनबूझा सा इक तेवर थे बाबूजी

कभी बड़ा सा हाथ खर्च थे कभी हथेली की सूजन
मेरे मन का आधा हिस्सा आधा डर थे बाबूजी

अम्मा

चिंतन,दर्शन,जीवा,सर्जन,रूह,नजर पर छाई अम्मा
सारे घर का शोर शराबा, सूनापन तन्हाई अम्मा

उसने ख़ुद को खोकर, मुझमें एक नया आकार लिया
धरती, अम्बर, आग,हवा,जल जैसी सच्चाई अम्मा

घर के झीने रिश्ते मैंने लाखों बार उधरते देखे
जाने कब चुपके से कर देती तुरपाई अम्मा

सारे रिश्ते जेठ दुपहरी , गर्म हवा, आतिश अंगारे
झरना, दरिया, झील, समंदर, भीनी सी पुरवाई अम्मा

पिछले बरस बाबूजी गुजरे, चीजें सब तक़सीम हुई
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से आई अम्मा
आलोक श्रीवास्तव
ये दोनों कविताएं दिल को छु गयी इसीलिए आप सब के लिए पढ़ें और याद करें अपने माँ-पिता को
अपने विचार भी लिखें

3 comments:

संगीता पुरी said...

दोनो कविताएं दिल को छूनेवाली हैं। आभार।

Shastri JC Philip said...

इन मोतियों के लिये आभार. मुझे एकदम अपने मांबाप याद आ गये!



-- शास्त्री जे सी फिलिप

-- हिन्दी चिट्ठा संसार को अंतर्जाल पर एक बडी शक्ति बनाने के लिये हरेक के सहयोग की जरूरत है. आईये, आज कम से कम दस चिट्ठों पर टिप्पणी देकर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)

वीनस केसरी said...

अच्छे भाव
बेहतरीन ग़ज़ल

खास कर ये शेर

अब तो उस सूने माथे पर कोरेपन की चादर है
अम्माजी की सारी सजधज सब जेबर थे बाबूजी

भीतर से खासे जज्बाती और ऊपर से ठेठ पिता
अलग अनूठा अनबूझा सा इक तेवर थे बाबूजी

घर के झीने रिश्ते मैंने लाखों बार उधरते देखे
जाने कब चुपके से कर देती तुरपाई अम्मा

सारे रिश्ते जेठ दुपहरी गर्म हवा आतिश अंगारे
झरना दरिया झील समंदर भीनी सी पुरवाई अम्मा

पिछले बरस बाबूजी गुजरे, चीजें सब तक़सीम हुई
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से आई अम्मा

(मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से आई अम्मा)
वाह वाह .... क्या बात है


वीनस केसरी