Tuesday, September 16, 2008

बेसन की सोंधी रोटी

बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका बासन
चिमटा फुँकनी जैसी माँ

बान की खूर्रीं खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी
थकी दुपहरी जैसी माँ

चिड़ियों की चहकार में गूंजे
राधा -मोहन अली-अली
मुर्गे की आवाज़ से खुलती
घर की कुंडी जैसी माँ

बीवी बेटी बहन पडोसन
थोडी थोड़ी सी सब में
दिनभर एक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी माँ

बाँट के अपना चेहरा माथा
आँखें जाने कहाँ गईं
फटे पुराने इक अलबम में
चंचल लड़की जैसी माँ
- निदा फ़ाज़ली

1 comment:

Anonymous said...

sachmuch, nida fasli sahab ka jawaab nahi

joginder, pune