Tuesday, September 2, 2008

विश्वासों की चिड़िया

राई जितना पुण्य है,
पर्वत जितना पाप
विश्वासों की चिड़िया डरती
घुट-घुट हर पल आहें भरती
कोई है ना सुनने वाला
एक अकेली जीती मरती
अपनेपन को - लग गया,
आज किसी का शाप
नागफनी घोटालों की है
चलती कपटी चालों की है
झेल रहे नित पीड़ा गहरी
हालत यह रखवालों की है
मन से सुख - अब है उड़ा,
बनकर सारा भाप
मन खेतों में नफरत उगती
प्यासी-प्यारी हसरत उगती
काँटों के मन अब भी गहरी
केवल रोज शरारत उगती
राम-नाम का - कर रहे,
कपटी बगुले जाप
-श्याम अंकुर( अनुभूति से साभार)

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