Monday, June 30, 2008

पाल बाँधना छोड़ दिया

पाल बाँधना छोड़ दिया है
जब से मैंने नाव में,
मची हुई है अफरा-तफरी,
मछुआरों के गाँव में।।

आवारागर्दी में बादल
मौसम भीलफ्फाज हुआ,
सतरंगी खामोशी ओढ़े
सूरजइश्क मिजाज हुआ,
आग उगलती नालें ठहरीं,
अक्षयवट की छाँव में।।

लुका-छिपी केखेल-खेल
मेंटूटे अपने कई घरौदें,
औने-पौनेमोल भाव
मेंचादर के सौदे पर सौदे,
लक्ष्यवेध का बाजारू मन,
घुटता रहा पड़ाव में।।

तेजाबी संदेशों में
गुमहैं तकदीरे फूलों की,
हवा हमारे घर को तोड़े
साँकल नहीं उसूलों की,
शहतूतों पर पलने वाले,
बिगड़ रहे अलगाव में।।
--कुमार शैलेन्द्र

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