हिन्दी ने इंटरनेट पर जिस गति से अपनी जगह बनाई है वह चौंकाने वाली है। इस बात में कोई शक नहीं कि हिन्दी अख़बारों और हिन्दी टीवी चैनलों से लेकर हिन्दी फिल्मों ने हिन्दी को स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। लेकिन इसके साथ ही हिन्दी को बाजार की भाषा बनाने के नाम पर उसके साथ शर्मनाक दुराचार भी किया है। इसका कारण यह है कि अंग्रेजी स्कूलों में अंग्रेजी माहौल में पले-बढ़े लोगों ने अपनी एमबीए और मास कम्युनिकेशन की डिग्रियों के बल पर मीडिया, कॉर्पोरेट और सैटेलाईट चैनलों की महत्वपूर्ण जगहों पर कब्जा कर लिया। यहाँ आने के बाद भाषा की शिष्टता, उसकी शुध्दता और भाषाई सौंदर्य का उनके लिए कोई मतलब नहीं रहा। हिन्दी मात्र बोली रह गई यानि जिसको हिन्दी बोलना आता है और जो हिन्दी समझ लेता है वह देश और दुनिया में बसे 70 करोड़ हिन्दी भाषियों का मसीहा हो गया। हिन्दी लिखना या पढ़ना आना कोई योग्यता नहीं रही।
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