बंधू फिर भी पूछते हो क्या हुआ
कंठ लोटे डीके फंसा है डोर मैं
और सौ सौ हाथ गहरा है कुआँ
बंधू फिर भी पूछते हो क्या हुआ
पूरा अँधेरा नाप कर पहुँचा अटल मैं
किंतु प्यासा ही रहा मैं डूब कर जल मैं
सैंकडो गोते सहे यह दंड बिन अपराध का
मैं भटकता अर्थ हूँ खंडित किसी संवाद का
खींचा गया ऊपर निकला पेट से पानी
पी चला पंथी डगर अपनी हमें देकर दुआ
बंधू फिर भी पूछते हो क्या हुआ
रक्षा अमावस क्यों करेगी चांदनी के साँस की
चील के घर सोंपना वह भी धरोहर मांस की
धन्य है आकाश की रक्षा व्यवस्था देखिये
आँख की इस किरकिरी को आप भी उल्लेखिये
चाँद को राह से होकर गुजरना है
राहू को रक्खा गया है उस डगर का पहरुआ
बंधू फिर भी पूछते हो क्या हुआ
कंठ निरंकुश और घायल वक्ष बूढे बाप का
सम्भव नही अनुभव करे अंगार अपने ताप का
बूढे युधिष्ठिर के ह्रदय का दर्द मुझको भी मिला
बंधू अब तक चल रहा है यह अनर्गल सिलसिला
उम्र के चौथे पहर तक दाँव ही लगते रहे
जिन्दगी है जिन्दगी या जिन्दगी केवल जुआ
बंधू फिर भी पूछते हो क्या हुआ
सरोवर मैं नही है जल कमल प्यासे रहें क्या
हठीले हंस लंघन की व्यथा व्याकुल सहें क्या
काम कल्पित कंदरा मैं बैठ कर जीता रहा
निर्धन अंधेरों की हताहत रौशनी पीता रहा
अमृत छुआ होगा किसी के वास्ते मैं कह नही सकता
मेरे लिए टू चन्द्रमा से जब छुआ विष ही छुआ
बंधू फिर भी पूछते क्या हुआ
सुन्दरी का गाध आलिंगन किसे भाये नही
चांदनी बातें करे टू कौन बतियाये नही
पर सजगता है जरूरी चंच्रिकी चाव में
नाव पानी मैं रहे पानी न आए नाव में
शीतल सलिल के कवच जिनको मिल गए वे धन्य हैं
ज्वालामुखी के पर्वतों ने रात दिन मुझको छुआ
बंधू फिर भी पूछते हो क्या हुआ
दल सबल दस्कंध्रों के घुमते हैं देश मैं
योजनायें अपहरण की साधुओं के वेश मैं
आदिवासी पर्ण कुटियों मैं पड़ी सीता सयानी
लक्ष्मण की चाप रेखाएं हुई कल्पित कहानी
भील भोले वंश की अब राम ही रक्षा करें
कंस बस्तर को गया रावन गया है झाबुआ
बंधू फिर भी पूछते हो क्या हुआ
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