Monday, May 5, 2008

तुम काटो मैं वृक्ष लगाऊं
सृजन द्वार पर अलख जगाऊं
तुम काटो मैं वृक्ष लगाऊं
काट रहे क्यों प्यारे जंगल
बाँट रहे क्यों अरे अमंगल
सुख शान्ति के कोष यही हैं
क्यों करते हो घर मैं दंगल
तुम सूरज को चले डुबाने
मैं सूरज नित भोर उगाऊं ॥
छीना झपटी बहुत बढ़ी है
दंभ कपट चल नीति अडी है
जो वृक्षों को काट गिराए
मोटर उनके द्वार खड़ी है
चले तिलांजलि देने श्रम को
मैं श्रम के नवगीत सुनाऊं ॥
हरियाली को निगल रहे हैं
मौसम को भी चिगल रहे हैं
बढ़ा प्रदूषण घर आँगन मैं
जहर द्वार पर उगल रहे हैं
तुमने पीढ़ी पंगु बनाई
मैं गिरिवर रह उन्हें दिखाऊं ॥
सृजन द्वार पर अलख जगाऊं
तुम काटो मैं वृक्ष लगाऊ
( उक्त रचना वरिष्ठ कवि श्री बदरी प्रसाद परसाई के पर्यावरण गीत का अंश है मैं प्रयास करूंगा की इसे नियमित रूप से आपको प्रस्तुत करूं )

2 comments:

sanjeev persai said...

suryakanta ji
bahut achaa prayaas hai
sadhuwaad

Anonymous said...

सरल जी आपका यह प्रयास यकीनन सराहनीय है.....हमारा सहयोग िनरन्तर आप को उपलब्ध होगा