तुम काटो मैं वृक्ष लगाऊं
सृजन द्वार पर अलख जगाऊं
तुम काटो मैं वृक्ष लगाऊं
काट रहे क्यों प्यारे जंगल
बाँट रहे क्यों अरे अमंगल
सुख शान्ति के कोष यही हैं
क्यों करते हो घर मैं दंगल
तुम सूरज को चले डुबाने
मैं सूरज नित भोर उगाऊं ॥
छीना झपटी बहुत बढ़ी है
दंभ कपट चल नीति अडी है
जो वृक्षों को काट गिराए
मोटर उनके द्वार खड़ी है
चले तिलांजलि देने श्रम को
मैं श्रम के नवगीत सुनाऊं ॥
हरियाली को निगल रहे हैं
मौसम को भी चिगल रहे हैं
बढ़ा प्रदूषण घर आँगन मैं
जहर द्वार पर उगल रहे हैं
तुमने पीढ़ी पंगु बनाई
मैं गिरिवर रह उन्हें दिखाऊं ॥
सृजन द्वार पर अलख जगाऊं
तुम काटो मैं वृक्ष लगाऊ
( उक्त रचना वरिष्ठ कवि श्री बदरी प्रसाद परसाई के पर्यावरण गीत का अंश है मैं प्रयास करूंगा की इसे नियमित रूप से आपको प्रस्तुत करूं )
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2 comments:
suryakanta ji
bahut achaa prayaas hai
sadhuwaad
सरल जी आपका यह प्रयास यकीनन सराहनीय है.....हमारा सहयोग िनरन्तर आप को उपलब्ध होगा
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