एक कठिन प्रश्न व्यवस्था का
पिछले दिनों एक बहुत पुराने पत्रकार मिल गए। व्यवस्था से खफा रहना उनका पुराना शगल था जो आज तक कायम है। यार ये अखबार आजकल वो क्यों नही लिखते जो की पाठक पढ़ना चाहता है या की पाठक की मूल समस्या है। आते ही और बिना बैठे ही इतना खतरनाक सवाल सुनकर मैं हक्का बक्का रह गया। मैंने कुर्सी सरकते हुए कहा की आप क्या लेंगे मौसम के हिसाब से ठंडा या की फिर आदत के हिसाब से गरम। तेवर कुछ सामान्य डरने की कोशिश करते हुए उन्होंने कहा की यार स्थिति ख़राब है अभी की ही बात बताता हूँ अभी कुछ देर पहले मैं शर्माजी के घर बैठा था उनकी पत्नी चाय लाई साथ मैं कुछ नमकीन था मैंने कहाभाभीजी कैसे हैं वे भड़क कर बोली हम कैसे होंगे भइया हमारा तोबस वोही चूल्हा चौका ही है आज गैस खत्म हो गयी है सो इंतजाम नही हो रहा है। आप तो पत्रकार हो किसी से तो जान पहचान होगी ही हमारे लिए एक सिलिंडर का इंतजाम करवा दो । पूरी बात सुनने के बाद मैंने अन्दर आवाज लगा दी की दो ग्लास शरबत बनवा देना हरी भइया आए हैं।
आब बोलने की बारी मेरी थी भइया अब आप ये बताओ की इस समस्या मैं अखबारों की क्या गलती है वे इंधन किसमस्य पर तो बहुत पहले से ही हल्ला मचा रहे हैं । फिर भी अगर आप गैस की समस्या से निपटना चाहते हैं और शर्मा जी की पत्नी के सामने अपने आप को आज भी पत्रकार कहलाना चाहते है तो मैं इन अखबारों की सलामती के लिए आपको अपने घर से ही एक सिलेंडर दे सकता हूँ ताकि श्रीमती शर्मा का काम भी हो जाए और आपकी साख भी बनी रहे।
वे कहने लगे यार मैं सिर्फ़ इसीलिए आपकी इज्जत करता हूँ क्योंकि आप मन की बात समझते हैं। पर आपको यह मानना ही होगा की अखबार आम जनता की सुनने को आज तैयार नही है बाजार ने पत्रकारिता के मूल्यों का हनन किया है और पत्रकार पैसे के पीछे भाग रहे हैं। मैंने कहा भइया आप भी किस दुनिया मैं जी रहे है आजकल तो नागरिक पत्रकारिता का जमाना है। जिसमें नागरिक के लाभ के लिए ही काम किया जाता है और तो और ऐसी ख़बरों को प्राथमिकता दी जाती है जो की आम आदमी को सीधे सीधे प्रभावित कर रही हो । मेरा कहना ही था की मुझे लगा की मैंने घास के सूखे ढेर पर बैठकर सिगरेट सुलगा ली हो। भइया बोले तुम तो हो चू ----, तुमको क्या दिखाई नही देता की ये सब नागरिक पत्रकारिता के नाम पर आम जनता को और सरकार को ठग रहे हैं, पत्रकारिता मैं बनियों की चप्पलों को धोने वाले आज सब नागरिक पत्रकार बने फिर रहे है साले सब सुबह ग्यारह बजे से शाम पाँच बजे तक जनसंपर्क कार्यालय के कैम्पस मैं बैठे नजर आते हैं। उनसे अच्छा तो चोर होता है जो कहता है की मैं चोर हूँ आख़िर अपनी असलियत तो नही छुपाता है। आने वाले पत्रकारिता की पीढ़ी को अगर सबसे अधिक नुकसान होने वाला है तो वो ये तथाकथित नागरिक पत्रकार ही होंगे मैं तुम्हें ये दावे से कह सकता हूँ। इनसे तो ये अखबार ही अच्छे हैं जो अपने अखबार को एक उत्पाद की तरह तीन चार रुपयों मैं बेचकर पत्रकारिता को जीवित रखे हैं। अछा मैं चलता हूँ बाकी फिर कभी आज मंत्री के यहाँ जाना है साले का तबादले के सिलसिले मैं। मैंने भी अपने हाथ का शरबत ख़त्म किया वे काफी दूर तक निकल चुके थे।
1 comment:
Accha Prayas Hai. Lago Raho.............
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